Sunday, 26 April 2020

In corona times, it is reassuring to read a poem full of hope, written by a doctor friend.

 

ये वक़्त भी गुज़र जायेगा, देखना तुम।

ये वक़्त भी गुज़र जायेगा, देखना तूम।

नदियों का उबाल भी, करें चट्टानों से सवाल कई,
पनघट पर आकर, खुद ही ठहर जायेगा, देखना तुम।
ये....

उजियारा भले ही चाहे, कर ले कहीं और डेरा,
भोर भए, यकीनन शहर आएगा, देखना तुम।
ये...

माना वादियों में सही, सध रखी हो, चुप्पी सी,
चहचहा पंछी, सुरों का मंज़र लाएगा, देखना तुम।
ये...

भले बीता अरसा एक मेरा, इस नक़ाबपोशी में,
गुमनामी ही मेरी, कयामत पे कहर ढाएगा, देखना तुम।
ये...

सुना एक ज़हर ने है, कर रखा हर सुं अंधेरा,
निगेहबान कई मेरे, ये ही ठोकर खाएगा, देखना तुम।
ये...

क्यूं कर रहा ये दंभ, सासों पे हावी होने का,
मेरी हिम्मत से ना लड़ पाएगा, देखना तुम।
ये...

कई थपेड़े सहे हैं, मेरे आशाओं के शिखर ने,
ये भी टकरा कर, बस बिखर जायेगा, देखना तुम।
ये वक़्त भी गुज़र जायेगा, देखना तुम।

                 ज्योति प्रकाश

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